FAUJI KHABAR

Bishnoi Samaj : एक प्रकृति प्रेमी और सामाजिक चेतना की मिसाल

बिश्नोई समाज का इतिहास एक प्राचीन और अद्भुत कहानी है

गुरु जांभेश्वर जी और Bishnoi Samaj की नीति

प्रकृति की रक्षा में बलिदान:  बिश्नोई समाज खेजड़ली कांड

खेजड़ी का वृक्ष खेजड़ी का वृक्ष

खेजड़ी या शमी एक वृक्ष है जो थार के मरुस्थल एवं अन्य स्थानों में पाया जाता है। यह वहां के लोगों के लिए बहुत उपयोगी है। इसके अन्य नामों में घफ़ (संयुक्त अरब अमीरात), खेजड़ीजांट जांटीसांगरी (राजस्थान), छोंकरा (उत्तर प्रदेश), जंड (पंजाबी), कांडी (सिंध), वण्णि (तमिल), शमी, सुमरी (गुजराती) आते हैं। इसका व्यापारिक नाम कांडी है। यह वृक्ष विभिन्न देशों में पाया जाता है जहाँ इसके अलग अलग नाम हैं। अंग्रेजी में यह प्रोसोपिस सिनेरेरिया नाम से जाना जाता है। खेजड़ी का वृक्ष जेठ के महीने में भी हरा रहता है। ऐसी गर्मी में जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तब यह पेड़ छाया देता है। जब खाने को कुछ नहीं होता है तब यह चारा देता है, जो लूंग कहलाता है। इसका फूल मींझर कहलाता है। इसका फल सांगरी कहलाता है, जिसकी सब्जी बनाई जाती है। यह फल सूखने पर खोखा कहलाता है जो सूखा मेवा है। इसकी लकड़ी मजबूत होती है जो किसान के लिए जलाने और फर्नीचर बनाने के काम आती है। इसकी जड़ से हल बनता है। अकाल के समय रेगिस्तान के आदमी और जानवरों का यही एक मात्र सहारा है। सन १८९९ में दुर्भिक्ष अकाल पड़ा था जिसको छपनिया अकाल कहते हैं, उस समय रेगिस्तान के लोग इस पेड़ के तनों के छिलके खाकर जिन्दा रहे थे। इस पेड़ के नीचे अनाज की पैदावार ज्यादा होती है।

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साहित्यिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व

खेजड़ली बलिदान स्मारक, जोधपुर।

विश्नोई समाज के 29 नियम

you tube https://www.youtube.com/watch?v=aT6YuRJlHmA

बिश्नोई समाज का योगदान

आज बिश्नोई समाज विशेष रूप से राजस्थान और हरियाणा के इलाकों में बसा हुआ है, लेकिन उनके पर्यावरण सुरक्षा के प्रयास विश्व भर में प्रशंसित हैं। विश्व जागरूकता के माध्यम से बिश्नोई लोगों का योगदान प्रकृति संरक्षण के क्षेत्र में एक मिसाल बन चुका है।

निष्कर्ष: Bishnoi Samaj एक ऐसा समुदाय है जो प्रकृति की रक्षा, जीव दया, और सामाजिक उत्तरदायित्व के संदर्भ में दुनिया को एक नई दिशा दिखाता है। गुरु जांभेश्वर जी के आदर्श और खेजड़ली के शहीदों के बलिदान को याद रखते हुए, हमें भी अपने जीवन में प्रकृति के प्रति उतनी ही श्रद्धा और प्रतिबद्धता लानी होगी।

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